Sunday 29 January 2012

उम्मीद की चादर...

रोशनी के रेशों से बनी,
उम्मीद की चादर.
हम ओढ़ लेते हैं तानकर,
और बिछाकर लेट जाते हैं उसपर, बेसुध...
जब कभी न सच होने वाले सपने देखते हैं...
लपेट लेते हैं खुद को उसमें,
जब जमने लगती है आसपास,
दर्द की सर्द बर्फ...
उम्मीद की चादर में लिपटी, दो रोशन आँखें,
अंधेरों का काजल लगाए, ताकती हैं दूर...
खुशगवार सुबह का रास्ता...
निकलते हैं जब किसी नए सफ़र पर,
उम्मीद की चादर,
भर लेते हैं यादों के बैग में, ठूंसकर,
और सफ़र के सबसे कठिन मोड़ पर,
निकलते हैं उसे इस्तेमाल के लिए,
गर्माहट, ऊर्जा, खुशबू की आस में...
जब झीने पड़ने लगते हैं, रोशनी के रेशे,
तो उम्मीद की फटती चादर से,
झांकते हैं, अवसाद, दुःख, निराशा...
हम फीकी खुशियों और नीलाम सपनों के पैबंद टांककर,
कर देते हैं उसकी मरम्मत,
और तब, वो चादर, उम्मीद की चादर,
'हम' हो जाते हैं...

ठहराव...

ठहराव,
किसी पड़ाव पर नहीं, और न किसी मंजिल पर,
ठहरना,
खुद से चलकर खुद पर...
ठहराव,
किसी दुराव से नहीं, और न किसी दुःख से,
ठहरना,
आत्म-मुग्धता से चलकर 'आत्म-बोध' पर...
ठहराव,
जैसे हिमालय, जैसे अथाह समंदर, जैसे रास्ते...
ठहरना,
और सोख लेना, सूर्य की साडी संचित ऊर्जा,
ठहरना,
और पी लेना, वायु का सारा व्याकुल वेग...
ठहरना,
और देख लेना, सारे अदृश्य, एक ही दृश्य में...
ठहरना,
और पा लेना, सारे उत्तर, निःशब्द...

Thursday 25 August 2011

मुझे चाहिए..

मुझे गति नहीं चाहिए, स्थिरता भी नहीं,
भावनाएं नहीं चाहिए, तटस्थता भी नहीं,
मंजिल नहीं चाहिए, उद्देश्यहीनता भी नहीं,
मुझे चालाकी नहीं चाहिए, निश्चलता भी नहीं,

मुझे चाहिए सारा आकाश
उड़ने के लिए नहीं, निहारने के लिए.
मुझे चाहिए तेज़ बारिशें
भीगने के लिए नहीं, 'तर' होने के लिए.
मुझे चाहिए हवाएं, आंधियां, तूफ़ान
कोई रुख बदलने के लिए नहीं, उनके संग बहने के लिए.

मुझे चाहिए गलियाँ, सडकें, नदियाँ
रास्तों के लिए नहीं, अनवरतता के लिए
मुझे चाहिए पेड़, फूल, कलियाँ
हरियाली या खुशबू के लिए नहीं, आत्म-मुग्धता के लिए
मुझे चाहिए पहाड़, चट्टानें, पत्थर
दृढ़ता के लिए नहीं, कठोरता के लिए
मुझे चाहिए सूरज, चाँद, तारे
रौशनी के लिए नहीं, स्निग्धता के लिए
मुझे चाहिए पूरी दुनिया, पूरा जीवन
जीने के लिए नहीं, महसूस करने के लिए
मुझे चाहिए हर एक पूरी सांस
ताजगी, नयेपन, आत्मानुभूति के लिए.....

Wednesday 3 August 2011

'तुम'

तुम याद रहो हमको, तुम साथ रहो मेरे,
खुशबू बनकर साँसों का एहसास रहो मेरे,
ये आसमान के तारे ये फूलों की दीवारें,
सावन के इस मौसम में, बरसात रहो मेरे,
ये दिल और उसकी धड़कन, धड़कन के ताने-बाने,
तुम आँखों में सपना बनकर दिन-रात रहो मेरे....

गाँव सुहाना..

वो टेढ़ी-मेढ़ी पगडण्डी, वो कच्चे पक्के रस्ते.
वो धन की गेंहू की फसलें, वो चेहरे रोते हँसते.
वो सुबह-सुबह मिट्टी के घर से उठती सोंधी गंध.
वो जलते चूल्हे के धुंए से छाता सा एक धुंध.
वो नीम की ठंडी-ठंडी छाँव, वो खेलना छुपन-छुपाई.
वो छुपना पुआल के गल्ले में, वो पूछना 'मुनिया आई?'.
वो दरवाजे पर बैठी बुढ़िया को दिन-रात सताना.
वो सुनना ढेरों गलियाँ उससे गली में फिर छुप जाना.
वो तोड़ना आम बगीचों से वो गिरना और गिराना.
वो लालटेन की रौशनी तले किताबें खोले सो जाना.
वो नींद में खाना दूध-रोटी, फिर सपनों में खो जाना.
खुद आज हो गया एक सपना बचपन और गाँव सुहाना....
                                                            - ज्योति.

Saturday 21 May 2011

Meaningful/Meaningless: जागती सोती, हंसती रोती पाती खोती चलती हूं.रुकते झु...

Meaningful/Meaningless: जागती सोती, हंसती रोती
पाती खोती चलती हूं.रुकते झु...
: "जागती सोती, हंसती रोती पाती खोती चलती हूं. रुकते झुकते, बनते मिटते चलते-चलते , चलती हूं. धीरे-धीरे, शाम सवेरे उड़ती, गिरती चलती हूं . तेर..."
जागती सोती, हंसती रोती
पाती खोती चलती हूं.
रुकते झुकते, बनते मिटते 
चलते-चलते , चलती हूं.
धीरे-धीरे, शाम सवेरे 
उड़ती, गिरती चलती हूं .
तेरे मेरे, मेरे तेरे 
करते-करते चलती हूं.
सिली-सिली, सौंधी-सौंधी 
महकी महकी चलती हूं.
बेसुध-बेसुध, हलकी-हलकी
बहकी-बहकी चलती हूं.
रस्ते-रस्ते, गलियों-गलियों
पर्वत-पर्वत चलती हूं.
बादल-बादल, बूंदों-बूंदों
सागर सागर चलती हूं.
छिपते-छिपते, गिरते-बचते
चोरी-चोरी चलती हूं.
दौड़ी-दौड़ी, भागी-भागी
कदमों-क़दमों चलती हूं.
फूलों-कलियों, काटों-काटों
डाली-डाली चलती हूं.
पत्ते-पत्ते, सूखे बिखरे
उड़ते उड़ते चलती हूं.
रुकते-रुकते, सुनते-सुनते
गुनते-गुनते चलती हूं.
धड़कन-धड़कन, आँखों-आँखों
बहते-बहते चलती हूं.
                                ज्योति.